भारतीय संगीत में ताल और लय का महत्व
संगीत ताल और लय का बहुत ही गहरा नाता है | धरती, सूरज, चाँद, नक्षत्र यह सब अपनी-अपनी नीयत गति या लय में विद्धमान हैं | ठीक इसी प्रकार संगीत में भी एक समान गति को लय कहते हैं, जिसमें गायन, वादन या नृत्य हो रहा हो | लय और ताल का आपस में बहुत गहरा नाता है | यदि ताल शरीर है तो लय उसकी आत्मा, एक की अनुपस्थिति में दूसरे का वजूद ही नहीं रहता | संगीत में इनकी महत्ता छुपी नहीं है | ताल के अभाव में संगीत सार्थक नहीं होता, ऐसे संगीत को अनिब्ध संगीत कहते हैं | गायन की आलाप क्रिया इसके अंतर्गत आती है और यदि बंदिश भी आलाप की तरह ताल रहित हो तो संगीत नीरस हो जायेगा, इसलिए संगीत में ताल का होना अनिवार्य है | केवल ताल-युक्त या निबद्ध संगीत ही जीव को आनंद की अनुभूती करा सकता है | कई विद्वानों का भी यही मत है कि बेसुरा चल जायेगा पर बेताला नहीं |
ताल – यह ऐसी रचना है जो संगीत में समय को मापने के लिए प्रयोग की जाती है | इसकी लम्बाई आवश्यकता अनुसार छोटी या बड़ी हो सकती है | पूर्ण मात्रा के अलावा मात्रा के सवाए, आधे तथा पौने हिस्से का प्रयोग करने वाली तालें भी प्रचलन में हैं | ताल एक ऐसा फ्रेम या ढांचा है जिसमें गीत के बोल तथा लय को फिट किया जाता है, जिससे हमें एक सुंदर, कलात्मक, लयात्मक सांगीतिक रचना प्राप्त होती है | ताल को समझना जितना आसान है उतना ही कठिन लय को समझना है |
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